नेपाली कविता - कवि - भीष्म उप्रेती
अंग्रेज़ी से अनुवाद - विवेक मिश्र -
किताब
क्या यह चौंका नहीं देता?
कि शब्द नहीं हैं आज किताब में
कहाँ गए होंगे वे
आज अनायास?
सुबह तड़के ही
घिर आए काले बादल हर तरफ़
चिकटे बोरों में लिपटे
सोए हैं बच्चे, जो बीनते हैं कूड़ा सड़कों से
अस्पताल के बाहर गली के फ़ुटपाथ पर
कचरे के ढेर के क़रीब
जानलेवा बीमारी से मर रही है, एक औरत
थिगड़े लगे मैले-कुचैले कपड़ों में
जूझ रहा है एक बोझा ढोने वाला
हिमालय की शीत को भगाने के लिये
और दो वक़्त की रोटी के लिए
खड़े हैं लोग ख़ुद को बेचने के लिए।
एक-एक कर मैं उन सबके बारे में सोच रहा हूँ
मैं झिझोड़ रहा हूँ अपनी चेतना को
मेरे भीतर की कड़ुवाहट बन रही है नासूर
मैं खो रहा हूँ जज़्बात के बियाबान में।
आख़िर क्यूँ पढ़ी जाती है एक किताब?
काल को काटकर, बाँटने को पर्तों में
आज, मैं दुख और इंसानी ज़िदंगियाँ बाँचता हूँ
शब्द नहीं हैं किताब में, आज।
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