Sunday, April 26, 2009

वृक्ष

नेपाली कविता - कवि - क्रिसु क्षेत्री
अंग्रेज़ी से अनुवाद - विवेक मिश्र

वृक्ष

मैं व्रत करता रहा

जब था मैं ध्यान में

नीचे बैठा एक वृक्ष के


वृक्ष

निरन्तर करता था संवाद

गुनगुनाता था मधुर धुन में

मेरे शब्द


जब मैं हो रहा था अचेत

भूख से

वृक्ष ने दिए फल मुझे

रीतकर स्वयं


जब तप रहा था मैं

झुलसाते सूरज के नीचे

वृक्ष ने दी मुझे शीतल छाया


जब काँप रहा था

मैं शीत से

तब वृक्ष ने दी मुझे उष्णता

स्वयं शीत सह कर


मैं खोजता रहा ईश्वर को

बरसों-बरस

परन्तु अदृश्य रूप में

और ईश्वर खड़ा था

मेरे समक्ष

वृक्ष के रूप में।

किताब


नेपाली कविता - कवि - भीष्म उप्रेती

अंग्रेज़ी से अनुवाद - विवेक मिश्र -


किताब

क्या यह चौंका नहीं देता?

कि शब्द नहीं हैं आज किताब में

कहाँ गए होंगे वे

आज अनायास?

सुबह तड़के ही

घिर आए काले बादल हर तरफ़

चिकटे बोरों में लिपटे

सोए हैं बच्चे, जो बीनते हैं कूड़ा सड़कों से

अस्पताल के बाहर गली के फ़ुटपाथ पर

कचरे के ढेर के क़रीब

जानलेवा बीमारी से मर रही है, एक औरत

थिगड़े लगे मैले-कुचैले कपड़ों में

जूझ रहा है एक बोझा ढोने वाला

हिमालय की शीत को भगाने के लिये

और दो वक़्त की रोटी के लिए

खड़े हैं लोग ख़ुद को बेचने के लिए।


एक-एक कर मैं उन सबके बारे में सोच रहा हूँ

मैं झिझोड़ रहा हूँ अपनी चेतना को

मेरे भीतर की कड़ुवाहट बन रही है नासूर

मैं खो रहा हूँ जज़्बात के बियाबान में।


आख़िर क्यूँ पढ़ी जाती है एक किताब?

काल को काटकर, बाँटने को पर्तों में

आज, मैं दुख और इंसानी ज़िदंगियाँ बाँचता हूँ

शब्द नहीं हैं किताब में, आज।